शब्द की परिभाषा और भेद- shabd kise kahate hain
शब्द विचार (Etymology) :
शब्द विचार व्याकरण के दूसरा सबसे मूलभूत इकाई है वर्ण के बाद शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण होता है, यहीं से हम सभी प्रकार के व्याकरण शब्दों को लिखने और बोलने का प्रयास करते हैं और अनंतः अभ्यास करते करते हम इनके सभी शब्दों को लिख और पढ़ लेते हैं। वर्णों या ध्वनियों के सार्थक मेल से ही एक शब्द कोष का निर्माण होता है। यदि सार्थक मेल न हो, तो निरर्थक शब्द बनते हैं और उनका हिन्दी व्याकरण में कोई अर्थ नहीं रह जाता।
शब्द के परिभाषा:
वर्णों या ध्वनियों के सार्थक मेल को शब्द कहते हैं। यदि सार्थक मेल न हो, तो निरर्थक शब्द बनते हैं और उनका हिन्दी व्याकरण में कोई अर्थ नहीं रह जाता। जैसे एक उदाहरण से समझते हैं –
सार्थक मेल सार्थक शब्द
क+ल+म = कलम (लिखने की वस्तु)
क+म+ल = कमल ( एक प्रकार का फूल)
निरर्थक मेल निरर्थक शब्द
ल+क+म = लकम (हिन्दी भाषा में कोई अर्थ नही)
म+क+ल = मकल ( हिन्दी भाषा में कोई अर्थ नही)
शब्द और पद
ध्वनियों के सार्थक मेल से शब्द बनते हैं और जब वही शब्द किसी वाक्य में प्रयुक्त होते हैं, तो पद कहलाते है। जैसे –
सोहन, आम, खाता, है। ( सोहन, आम – संज्ञा शब्द हैं ), ( खाता, हैं – क्रिया शब्द )
सोहन आम खाता है। ( सोहन – कर्तापद हैं ), ( आम – कर्मपद हैं ), ( खाता है – क्रियापद )
शब्दों के भेद
( क ) व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के चार भेद होते हैं –
( 1 ) तत्सम, ( 2 ) तद्भव , ( 3 ) देशज, ( 4 ) विदेशज
तत्सम शब्द:
हिंदी में प्रयुक्त संस्कृत के मूल शब्दों को तत्सम शब्द कहते हैं। जैसे -पुस्तक, फल, पत्र, कृपा, यात्रा, पथिक, अंक, आज्ञा आदि।
तद्भव शब्द:
तत्सम के बिगड़े रूप को तद्भव कहते है। जैसे – तीता, आम, साॅंप, आग, कपूर, सियार, ओंठ, काजल आदि।
तत्सम तद्भव
तिक्त – तीता
आम्र – आम
सर्प – साॅंप
अग्नि – आग
कर्पूर – कपूर
श्रृगाल – सियार
देशज शब्द:
देशी बोलचाल में पाए जाने वाले शब्दो को देशज शब्द कहते है। जैसे- कबड्डी, कुत्ता, खच्चर, खोंता, तिलौरी, तेंदुआ, नानी आदि।
विदेशज शब्द:
विदेशी भाषा से आए हुए शब्दों को विदेशज शब्द कहते है। जैसे –
ॲंगरेजी – पेपर, टेबुल, बुक, डॉक्टर, पेंसिल, सिनेमा आदि।
अरबी – अक्ल, अदालत, अबीर, इज्जत, औरत, कलम आदि।
फारसी – अंगूर, अचार, अनार, कमर, खुश, चादर, जेब आदि।
तुर्की – उर्दू, कुरता, कुली, तोशक, बाबा, बेगम, सौगात आदि।
( ख ) बनावट या रचना की दृष्टि से शब्दों के तीन भेद होते हैं –
( 1 ) रूढ़, ( 2 ) यौगिक, ( 3 ) योगरूढ़
रूढ़ शब्द : जिन शब्दों के खंड निरर्थक हो, रूढ़ शब्द कहलाते हैं। जैसे – राज, कन्या, विद्या, सागर, आकाश, रोग आदि।
रूढ़ शब्द —खंड करने पर— निरर्थक शब्द
राज = रा + ज
कन्या = क + न्या
विद्या = वि + द्या
सागर = सा + ग + र | ( कोई अर्थ नही )
यौगिक शब्द: जिन शब्दों के प्रत्येक खंड सार्थक हो, यौगिक शब्द कहलाते है। जैसे – राजकन्या, हिमालय, विद्यालय, विद्यासागर, पाठशाला आदि।
यौगिक शब्द — खंड करने पर— निरर्थक शब्द
राजकन्या = राज + कन्या ( राज = राजा; कन्या = बेटी )
हिमालय = हिम + आलय ( हिम = बर्फ; आलय = घर )
विद्यालय = विद्या + आलय ( विद्या = ज्ञान; आलय = घर )
विद्यासागर = विद्या + सागर ( विद्या = ज्ञान; सागर = सागर )
पाठशाला = पाठ + शाला ( पाठ = शिक्षा; शाला = स्थान )
योगरूढ़ शब्द : जो शब्द अपने सामान्य या साधरण अर्थ को छोड़कर एक विशेष अर्थ को ग्रहण करते हैं, उसे योगरूढ़ शब्द कहते है। जैसे – लम्बोदर, पंकज, गिरिधारी, घनश्याम आदि।
योगरूढ़ शब्द— साधारण अर्थ — विशेष अर्थ
लम्बोदर ( लंबा + उदर ) = लम्बे पेटवाले – कमल
पंकज ( पंक + ज ) = कीचड़ में जन्मा – कमल
गिरिधारी ( गिर + धारी ) = गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले- श्रीकृष्ण
घनश्याम ( घन + श्याम ) = घन के समान श्याम (काले) – श्रीकृष्ण
( ग ) रूपांतर की दृष्टि से शब्द के दो भेद होते हैं –
( 1 ) विकारी शब्द, ( 2 ) अविकारी शब्द
विकारी शब्द : जो शब्द लिंग, वचन, कारक और पुरुष के अनुसार अपने रूप बदलते हैं , उन्हें विकारी शब्द कहते है। इनके भेद हैं –
( 1 ) संज्ञा, ( 2 ) सर्वनाम, ( 3 ) विशेषण, ( 4 ) क्रिया।
अविकारी शब्द (अव्यय) : जिनके रूप कभी नहीं बदलते हैं, उन्हें अविकारी शब्द कहते है। इनके भेद हैं –
( 1 ) संबंधबोधक , ( 2 ) समुच्चयबोधक, ( 3 ) विस्मयादिबोधक, ( 4 ) क्रियाविशेषण
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