Sanskrit Vyakaran- संस्कृत व्याकरण सूत्र, वर्ण और वर्णमाला

SSanskrit Vyakaran- संस्कृत व्याकरण सूत्र, वर्ण और वर्णमाला

भाषा क्या है (what is language in sanskrit)
संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा है जो देवों की भाषा हैं जो सभी भाषाओं की जननी है वहीं संस्कृत भाषा है । आज की आधुनिक भाषाएं – हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, बांग्ला, तमिल, तेलगु, मराठी, सिंधी, पंजाबी, नेपाली आदि भाषाओं का उद्भव स्थल हमारी संस्कृत ही है। जो भारतीय उपमहाद्वीप की एक सबसे बड़ी और सबसे प्राचीन भाषा है। इन भाषाओं की उत्पत्ति स्वयं भगवान् किए हैं। इसलिए संस्कृत सबसे मधुर, सरल, सहज और अनुपम है। हालांकि ये बात अलग है कि आज संस्कृत बोलने वालों की संख्या बहुत कम है इसका एक कारण गुरुकुल आज के समय बहुत ही कम है। आप जानतें ही है आज के आधुनिक पढाई में भी संस्कृत को उतना नहीं पढ़ाया जाता होगा जितना कि गुरुकुल में पढ़ाया जाता है।

Sanskrit Vyakaran (संस्कृत व्याकरण) एक शब्दशास्त्र हैं जिस के अध्ययन से शब्दों की उत्पत्ति, विकास, अर्थ एवं प्रयोग का सम्यक ज्ञान होता है। Sanskrit Vyakaran (संस्कृत व्याकरण) की इकाइयों में वर्ण, शब्द, वाक्य, संज्ञा, सर्वनाम, अव्यय, विशेषण, क्रिया, संधि, समास, उपसर्ग, प्रत्यय आदि आते हैं जिससे हमारा Sanskrit Vyakaran (संस्कृत व्याकरण) की उत्पत्ति हो जाती हैं। वैसे संस्कृत व्याकरण और हिन्दी व्याकरण में कोई ज्यादा का अंतर नहीं होता है लगभग संस्कृत व्याकरण और हिन्दी व्याकरण के परिभाषा और उनके अर्थ समान ही होते हैं यदि बच्चें संस्कृत व्याकरण को अच्छे से पढ लें तो उन्हें हिन्दी व्याकरण पढ़ने और समझने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती हैं। इसलिए संस्कृत भाषा को सभी भाषाओं की जननी मानी जाती हैं।

Sanskrit Vyakaran (संस्कृत व्याकरण): वर्ण-प्रकरण, sanskrit alphabet, Sanskrit Grammar:

वर्ण (Varn): वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं जिसके खंड या टुकड़े नहीं किए जा सकते, वर्ण कहलाते है। टुकड़ा होने की स्थिति में इन्हें अक्षर कहते हैं। जैसे: क – क‌् + अ

वर्ण दो प्रकार के होते हैं: १ स्वर वर्ण और २ व्यंजन वर्ण

Sanskrit Varnamala (संस्कृत वर्णमाला)

संस्कृत वर्णमाला में 13 स्वर 33 व्यंजन और 4 अयोगवाह होते हैं इस प्रकार संस्कृत में कुल 50 वर्ण होते हैं संस्कृत में स्वर वर्णों को ‘अच्’ और व्यंजन वर्णों को ‘हल्’ कहते हैं

☞अच्: १३ (अ,इ,उ,ऋ,लृ,आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ,ॠ)
☞हल्: ३३ (क्,ख्,ग्,घ्,ङ्, च्,छ्,ज्,झ्,ञ् , ट्,ठ्,ड्,ढ्,ण्, त्,थ्,द्,ध्,न्, प्,फ्,ब्,भ् ,म् , य् ,र् ,ल् ,व् ,श् ,ष् ,स् ,ह्)
☞आयोगवाह: ( ं अनुस्वार, ः विसर्ग, जिह्वामूलीय, उपध्मानीय)

१. स्वर (अच्) वर्ण किसे कहते हैं? (Swar Varn in Sanskrit): जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता से हो, उसे स्वर वर्ण कहते हैं। इनकी संख्या १३ हैं।

☞ स्वर (अच्) तीन प्रकार के होते हैं-

१. मूल-स्वर – मूल-स्वर के उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है इन्हें हम ह्रस्व स्वर भी कहते हैं। जैसे: अ,इ,उ,ऋ,लृ = ५ ।

२. सन्धि-स्वर – किसी-न-किसी संधि के आधार पर दो मूल स्वरों से बने हुए स्वरों को सन्धि-स्वर कहते हैं। इन्हें अच् संधि भी कहते हैं। जैसे: आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ,ॠ = ८ ।

आ, ई, ओर ऊ स्वरों में दीर्घ संधि होने से इन्हें दीर्घ स्वर भी कहते हैं।

३. प्लुत स्वर: जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी ज्यादा समय लगता है, उसे प्लुत स्वर कहते हैं। किसी को देर तक पुकारने में या नाटक,संवाद, संगीत में इनका प्रयोग अक्सर किए जाते देखें होंगें। वैदिक मंत्रों के उच्चारण में इनका प्रयोग किया जाता है। इन्हें त्रिमात्रिक स्वर भी कहते हैं। इसके लिए (३) का अंक लगाया जाता है। जैसै- ओऽम् , हे राम ऽ ।

२. व्यंजन (हल्) वर्ण किसे कहते हैं? (Vyanjan Varn in Sanskrit) : जिन वर्णों का उच्चारण स्वर वर्णों की सहायता से होता है, उन्हें हम व्यंजन वर्ण कहते हैं। जैसे: ‘ क ‘ में दो वर्ण हैं – ‘क्’ और ‘अ’ । क् व्यंजन है और अ स्वर हैं। क् से लेकर ह् तक कुल ३३ व्यंजन वर्ण हैं। क्ष, त्र, ज्ञ संयुक्त व्यंजन वर्ण हैं।

☞ व्यंजन (हल्) वर्ण चार प्रकार के होते हैं –

१. स्पर्श-वर्ण या स्पर्श व्यंजन : जिन वर्णों के उच्चारण में मुख के सभी भागों का स्पर्श होता है, उसे स्पर्श व्यंजन कहते हैं। ये कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, और पवर्ग के २५ वर्ण स्पर्श वर्ण हैं। जैसे:

कवर्ग – क्,ख्,ग्,घ्,ङ्
चवर्ग – च्,छ्,ज्,झ्,ञ्
टवर्ग – ट्,ठ्,ड्,ढ्,ण्
तवर्ग – त्,थ्,द्,ध्,न्
पवर्ग – प्,फ्,ब्,भ् ,म्

२. अन्त:स्थ- जो वर्ण स्पर्श एवं ऊष्म के बीच में अवस्थित होते हैं उन्हें अन्त:स्थ व्यंजन कहते हैं।
य्, र्, ल्, व् को अन्त:स्थ वर्ण कहते हैं।

३. ऊष्म व्यंजन: वायु की रगड़ से जिन वर्णों के उच्चारण में ऊष्मा जागृत होती है उसे हम ऊष्म व्यंजन कहते हैं।

४. संयुक्त व्यंजन: जब दो व्यंजन वर्णों के बीच में स्वर वर्ण ना रहे तब उन्हें संयुक्त व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या निम्नलिखित हैं –
क्ष = क् +ष्
ज्ञ = ज् + ञ्
त्र = त् + र्

आयोगवाह- ं अनुस्वार और ः विसर्ग को आयोगवाह कहते है।

अनुस्वार (Anuswar): जब किसी वर्ण की अंतिम ध्वनि ( म् ) की तरह रह जाती है तो इन्हें अनुस्वार कहते हैं। इनका प्रयोग किसी वर्ण के ऊपर बिंदु के रूप में कि जाती है।
ं अनुस्वार
जैसे: तंत्र, मंत्र ,अंत आदि।

विसर्ग (Visarg): जब किसी वर्ण की अंतिम ध्वनि ( ह् ) शेष रह जाती है, तो इनका प्रयोग किसी वर्ण के आगे दो ः बिंदु के रूप में की जाती है।
ः विसर्ग
जैसै- अतः , नमः, शिवाय: , आदि ।

संस्कृत वर्णों का उच्चारण स्थान

संस्कृत वर्णों का उच्चारण स्थान: किसी भी वर्ग के उच्चारण के लिए मुख के विभिन्न भागों का सहारा लेना पड़ता है। मुख के जिस भाग से वर्ण का उच्चारण किया जाता है वह उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहलाता है। उच्चारण स्थान मुख्यतःभाषा क्या है हृदय से निकली हुई प्राणवायु हमारे मुख्य में उपस्थित ध्वनि यंत्रों (कंठ, तालु, ओष्ठ आदि) से टकराती है और विभिन्न ध्वनियों के सृष्टि करती हैं जिस स्थान को यह प्राणवायु स्पर्श करती है, वही वर्ण – विशेष का उच्चारण स्थान होता है –

संस्कृत वर्णों के उच्चारण स्थान ७ होते हैं –

१. कण्ठ, २. तालु, ३. मुधा, ४. दंत, ५. ओष्ठ, ६. नासिका, ७. जिह्वा्, ८. कण्ठ-तालु, ९. कण्ठ-ओष्ठय्, १०. दन्त-ओष्ठ

१. कण्ठ-वर्ण: कंठ से उच्चरित होने वाले वर्ण को कंठ्य वर्ण कहते हैं। अ,आ, कवर्ग और ः विसर्ग ।

२. तालु-वर्ण : जो वर्ण तालु से उच्चरित होते हैं वे तालव्य कहलाते हैं। इ, ई, चवर्ण, य् और श् ।

३. मुधा-वर्ण : जिन वर्णों का उच्चारण स्थान मुर्धा है, वे मूर्धन्य कहलाते हैं । ऋ, ॠ , टवर्ण , र् और ष् ।

४. दंत-वर्ण : जिन वर्णों का उच्चारण स्थान दांत है, वे दन्त्य कहलाते है। ऌ, ॡ, तवर्ण, ल् और स् ।

५. ओष्ठ-वर्ण: जिन वर्णों का उच्चारण ओठ से होता है, वे ओष्ठ वर्ण कहलाते हैं। उ, ऊ, पवर्ण ।

६. नासिका-वर्ण: जिन वर्णों का उच्चारण नाक से होता है, नासिका-वर्ण कहते हैं। च्, ञ्, म् , ङ् , ण् और न् इन्हें अनुनासिक वर्ण कहते हैं।

७. जिह्वा-वर्ण: जीवा मूल वर्ण है इनका उच्चारण सभी वर्णों में होता है।
क्,ख्…………..…………….त्र्, ज्ञ्

८. कण्ठ-तालु : जिन वर्णों का उच्चारण कंठ और तालु दोनों से होता है। ए, ऐ कण्ठ-तालु उच्चारण है।

९. कण्ठ-ओष्ठ: जिन वर्णों का उच्चारण कंठ और ओष्ठ दोनों से होता है। ओ, औ कण्ठ-ओष्ठय् उच्चारण है।

१०. दन्त-ओष्ठ: जिन वर्णों का उच्चारण दन्त और ओष्ठ दोनों से होता है। व का दन्त-ओष्ठ उच्चारण है।

☞⁠ संस्कृत व्याकरण के अगले टॉपिक प्रयत्न-विचार है जिसे हम अगले लेख में चर्चा करेंगे। जिसका लिंक नीचे दिया गया 🖇️ 👇🏻जय हिन्द…

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